Thursday 10 August 2023

 मेरी कविता बस कुछ शब्द नही

बढ़कर है कहीं उनसे

कुछ अंतस की बातें

कुछ पर्दें के पीछे की कहानियां

घटी और घट रहीं है जो

अपरिचित सी हैं अंजान कहीं

लिखना उन्हें एक आदत है

या यूं कहूं मेरे शब्दों से उनकी इबादत है

कभी कहना उन लफ्जों को बस में न था

तभी तो उन्हें जगजाहिर करने का साधन है


मैं ये न कहूं कि

मैं लिखता हूं

मैं नहीं पर लिखतें हैं ये भाव सभी

कुछ इच्छाएं 

कुछ स्मृतियां

कुछ मर्म

और कुछ स्थितियां 

सभी लिखतें हैं

मैं नहीं।

पतझड़ी पात

तुमने पतझड़ी पातो को देखा होगा। प्रतीत होता है, मै भी हूँ। गिर रहा हूँ, बिना ध्येय के। ना कोई प्राण शेष है अब। सिवाय निर्जीव श्वासों ...