जो न बोले हैं कुछ अब तक
वो भी थोड़ा बोले
चुप्पी साध रखी है अब तक
थोड़ा मुँह तो खोले
अब क्या शिखर पाना नहीं
जो ऊँचाई देख कर सिहर रहे
अंदर के पंछी से कह दो
पर को थोडा खोले
अब उडना है आसमान से
सितारों की ऊंचाई तक
कह दो अब अवरुद्धो से
पथ को यूँ ना रोके
अब चुप्पी और ना बोलेगी
चुप्पी से नाता तोडें
जो न बोले हैं कुछ अब तक
वो भी थोड़ा बोले
Tuesday 31 May 2016
थोड़ा बोलें
Monday 30 May 2016
Friday 20 May 2016
मैं एवं मेरी पीडा....
अभी अभी संध्या चली गई
रजनी को बुलावा दे गई
कुछ क्षण में तिमिर आगमन हुआ
लहर चुप्पी की बह गई
रजनी को बुलावा दे गई
कुछ क्षण में तिमिर आगमन हुआ
लहर चुप्पी की बह गई
अब मैं हूँ और मेरा ध्यान है
फिर भी न पूर्ण संज्ञान हैं
और भी हैं समीप यहीं
माना वो अंजान है
फिर भी न पूर्ण संज्ञान हैं
और भी हैं समीप यहीं
माना वो अंजान है
सो तो सकते हैं वो सभी
हमको तो नींद नसीब नहीं
हमको तो नींद नसीब नहीं
कोशिश करता हूँ मैं बहुत
पर करवटें बदलता रहता हूँ
लाख जतन कर लिए
स्वयं को कोसता रहता हूँ
पर करवटें बदलता रहता हूँ
लाख जतन कर लिए
स्वयं को कोसता रहता हूँ
जुगत लगाता हूँ बहुत
पर असमर्थ खुद को पाता हूँ
कभी कभी तो यूँ ही मैं
सहसा बडबडाता हूँ
पर असमर्थ खुद को पाता हूँ
कभी कभी तो यूँ ही मैं
सहसा बडबडाता हूँ
क्या है ये और
क्यूँ मुझे खाता है?
निद्रा के वक्त भी मुझे
इतना तडपडाता है
क्यूँ मुझे खाता है?
निद्रा के वक्त भी मुझे
इतना तडपडाता है
क्या ये वो मेरे स्वप्न हैं
जो मुझको सोने देते नहीं
चुभते है मेरी आँखों में
और देते हैं अश्रुओं की नमी।
जो मुझको सोने देते नहीं
चुभते है मेरी आँखों में
और देते हैं अश्रुओं की नमी।
नहीं चाहता इन स्वप्नों को
यह निरा खल है
मुझे सोने न देने का
मेरा स्वयं से छल है
यह निरा खल है
मुझे सोने न देने का
मेरा स्वयं से छल है
पर ये कपटी मन है
मोल देता है इन ख्वाबो को
कहने को तो ये मेरा है
पर आता नहीं है काबू में
मोल देता है इन ख्वाबो को
कहने को तो ये मेरा है
पर आता नहीं है काबू में
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