Saturday 18 June 2016

कितने ही अरमां बसाए जेहन में
कभी तेरे अरमां ना नजर आये
बातें तो थी बहुत पर
उन्हें शब्दों में बयां ना कर पाए
शायद शब्दों से वैर रहा है
मेरी मन की बातों का
नुमाइंदगी करना चाहता था
पर जरिया ना नजर आया

पतझड़ी पात

तुमने पतझड़ी पातो को देखा होगा। प्रतीत होता है, मै भी हूँ। गिर रहा हूँ, बिना ध्येय के। ना कोई प्राण शेष है अब। सिवाय निर्जीव श्वासों ...