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पतझड़ी पात
तुमने पतझड़ी पातो को देखा होगा। प्रतीत होता है, मै भी हूँ। गिर रहा हूँ, बिना ध्येय के। ना कोई प्राण शेष है अब। सिवाय निर्जीव श्वासों ...
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कितना कुछ रह जाता है छूट जाता है और गुज़र भी रहा है पीछे न भरने वाले खड्ड मे समाता हुआ, एक अंतहीन खड्ड अंतहीन स्थान के सा...
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मेरी कविता बस कुछ शब्द नही बढ़कर है कहीं उनसे कुछ अंतस की बातें कुछ पर्दें के पीछे की कहानियां घटी और घट रहीं है जो अपरिचित सी हैं अंजान कह...
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