Saturday, 15 September 2018

सब निरंतर अग्रसर हैं

कितना कुछ रह जाता है 
छूट जाता है 
और गुज़र भी रहा है 
पीछे 
न भरने वाले खड्ड मे समाता हुआ, 
एक अंतहीन खड्ड 
अंतहीन स्थान के साथ 

सब निरंतर अग्रसर हैं 
उनमे मैं भी हूँ 

जब तक हूँ,
अनेक स्मृति हैं 
बनीं हुई और बन रही 
गुज़रना इनका भी निश्चित है 

न होने पर 
अन्य की स्मृतियों में हूँ 
उनके स्मृतिलोप होने तक 
जब 
सब निरंतर अग्रसर हैं 

प्रशांत चौहान अंजान 

26 comments:


  1. न होने पर
    अन्य की स्मृतियों में हूँ
    उनके स्मृतिलोप होने तक
    क्योंकि
    सब निरंतर अग्रसर हैं बेहतरीन रचना

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  2. यही नियम है.

    लिखते रहें.

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  3. धन्यवाद जी ....आपका आभार ...

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  4. बहुत लाजवाब रचना

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  5. बहुत लाजवाब रचना

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  6. आपका तहेदिल शुक्रिया श्रीमानजी

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  7. बेहतरीन अनुभूति आदरणीय प्रशान्त जी। ....

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    1. आपको सहृदय प्रणाम एवं धन्यवाद श्रीमान जी।

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  8. जब तक हूँ,
    अनेक स्मृति हैं
    बनीं हुई और बन रही
    गुज़रना इनका भी निश्चित
    बेहतरीन रचना 🙏

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    1. बहुत धन्यवाद जी...उत्साहवर्द्धन करते रहें ।

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  9. न होने पर
    अन्य की स्मृतियों में हूँ
    उनके स्मृतिलोप होने तक
    क्योंकि
    सब निरंतर अग्रसर हैं

    वाह बहुत खूब

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    1. आपकी सुंदर टिप्पणी हेतु धन्यवाद ।

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  10. सब निरन्तर अग्रसर है
    बहुत खूब....
    लाजवाब
    वाह!!!

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    1. बहुत धन्यवाद जी...उत्साहवर्द्धन करते रहें ।

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  11. अरे वाहहह...प्रशांत जी सुंदर जीवन दर्शन.. प्रकृति के नियामानुसार हम सभी समयचक्र के यात्री हैं।

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    1. जी सत्य है...आपकी प्रशंसा हेतु धन्यवाद...उत्साहवर्द्धन करते रहें

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  12. साँसें, उम्र जीवन .... ये सभी अग्रसर हैं सिर्फ यादें हैं जो अतीत सामने ले आती हैं ...
    सुन्दर रचना ...

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    1. सत्य कथन...आपका हृदय से आभार जी

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  14. अन्य की स्मृतियों में हूँ
    उनके स्मृतिलोप होने तक
    क्योंकि
    सब निरंतर अग्रसर हैं ,,,,,।बहुत ही भावपूर्ण रचना,,, बहुत सुंदर,ये स्मरति का चक्र चलता ही रहता है,सच है ।

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