मेरी कविता बस कुछ शब्द नही
बढ़कर है कहीं उनसे
कुछ अंतस की बातें
कुछ पर्दें के पीछे की कहानियां
घटी और घट रहीं है जो
अपरिचित सी हैं अंजान कहीं
लिखना उन्हें एक आदत है
या यूं कहूं मेरे शब्दों से उनकी इबादत है
कभी कहना उन लफ्जों को बस में न था
तभी तो उन्हें जगजाहिर करने का साधन है
मैं ये न कहूं कि
मैं लिखता हूं
मैं नहीं पर लिखतें हैं ये भाव सभी
कुछ इच्छाएं
कुछ स्मृतियां
कुछ मर्म
और कुछ स्थितियां
सभी लिखतें हैं
मैं नहीं।