रोज़ मांगता हूँ उस से
मुक्त कर दे
मेरे "मैं " से
मुझको मुक्त कर दे
चेष्टा करता हूँ
पर असफल हूँ
मुझे मेरे "पर्दों " से मुक्त कर दे
मैं रोता हूँ
पर रोना भी एक पर्दा है
मुझ रोने से मुक्त कर दे
तेरी वेदी पर अपने मैं को रख दूँ
विलीन कर अपने "मैं " में
सब से मुझको मुक्त का दे
प्रशांत चौहान "अंजान "
फोटो श्रेय - गूगल से साभार
बहुत खूब
ReplyDeleteshukriya ji
Deleteवाह मैं से स्व में आने की सुंदर पेशकश ।
ReplyDeleteaapka hridya se aabhar ji
Deletedhanyawaad ji
ReplyDeleteमैं से मुक्त होना आसान नहीं है,मैं की छटपटाहट को.व्यक्त करती सुंदर प्रार्थना।
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteलाजवाब 👌👌👌
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteमैं से मुक्ति इश्वर को पा जाना है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण ....
जी आपका धन्यवाद
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