कितनी ही बातें हैं और किस्से भी अनकहे है तो अनसुने रहे श्रोता नहीं मिले
तुमने पतझड़ी पातो को देखा होगा। प्रतीत होता है, मै भी हूँ। गिर रहा हूँ, बिना ध्येय के। ना कोई प्राण शेष है अब। सिवाय निर्जीव श्वासों ...