कितना मधुर हो सकता है ,
पाना !
जिस तरह आप सोचते हैं ,
हूबहू वैसे ही पाना |
जैसे ,
सपनो का भी वज़ूद हो |
दूर ना हो वो
वो ख़्याली ना हो ,
उसका भी वज़ूद हो |
अनेक कहें यथार्थवादी बनो ,
न जीओ वो ,
संभव नहीं जो |
मैं ना जीऊं तो चैन नहीं !
दिल यूँ ही बेचैन सही |
मधुर रहा हैं यूँ ही जीना,
बेचैनी ने तो हक़ ना छीना |
इतना ही काफ़ी रहा ,
चूल्हा ईंधन से जलता रहा |
प्रशांत चौहान "अंजान "
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