ये मुझे कमजोर कर रहीं हैं
ये कुछ आँखें हैं सपने लिए
जो निहार रही हैं उन्हें
हैं जो मीलों दूर
कुछ उम्मीदें लिए |
ये सिर्फ़ मेरी नहीं हैं
तुमने पतझड़ी पातो को देखा होगा। प्रतीत होता है, मै भी हूँ। गिर रहा हूँ, बिना ध्येय के। ना कोई प्राण शेष है अब। सिवाय निर्जीव श्वासों ...
सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteसुंदर भाव दर्शाती रचना
ReplyDeleteआप सभी की प्रशंसा के लिए शुक्रिया कृप्या अपना यू आर एल कमेंट करें
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