Wednesday 29 August 2018

यादें


वो यादें अजीब हैं 
दर्द देती‌ं है वो 
परिचित है अभी भी 
पर अब कहाँ है ?
दुःख है बहुत 
खेद है जीने का उन्हें |

क्यूँ  ?
आखिर क्यूँ जिया मैं ?
उन्हें जो हैं अब लापता 
वीरानो में कहीं 

वो अच्छी  थी 
पर अब सोचूं  तो दर्द क्यूँ 
अजीब सी है चुभन |

फिर नहीं पा सकता हूँ माना 
फिर भी आती है हृदय को दुखाने 
बिन बताये 

मन से पूछूं ,बताओ कैसी हैं वो ?
शब्द एक "अनमोल " |
फिर क्यूँ  रोए तू 
उन्हें सोच कर |

कहता है !
वो थी कभी , पर 
अब नहीं हैं 
इसीलिए ह्रदय भी दुरुस्त नही है 
दुःखता है वो 
जब लाता है तू उन्हें 
अतीत के झरोखों से |

उन्हें वहीं तक सीमित रहने दे ......

by prashant chauhan "अंजान "



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5 comments:

  1. जी प्रशांत जी अच्छी रचनाएँ हैं आपकी लिखी, कृपया ब्लॉग फोलोवर गैजेट भी लगाइये ताकि हमें मालूम हो सके आपकी नयी रचनाओं के बारे में।

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  2. aapka bahut bahut dhantawaad sweta ji.....

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  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  4. आपकी तारीफ के लिए धन्यवाद जी

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