मैंने देखा उसे
वो मुस्कुरा रही थी
अपने कुछ परिचितों के साथ
मंद मंद शीतल पवन सी
कुछ बह रही थी आज
वो रमणीय है
मन में रमने वाली
भीड़ में भी है कांति निराली
अब क्या करुँ
जानता नहीं एक शब्द मात्र
शायद मै ना बन सकूँ
हमसफ़र उसका
शायद ना मिले उसका साथ
पर सोचना इतना
मुझे पीड़ा देता है अपार
जिंदगी पहले ही बेहतर थी
पर अब ना होगा उस बेहतरी का साथ
प्रशांत चौहान अंजान
बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
dhanyawaad ....ji bilkul
Delete